पत्तों की सरसराहट, चिड़ियों की चहचहाहट...आसमां की नीलिमा। सभी सुकून में हैं। ऊंची इमारतों के बीच किस्म-किस्म की चिड़िया अपनी धुनों में गुनगुना रही हैं। आजकल घर में हैं, तो चिड़िया ही अलार्म की भूमिका निभा रही हैं। बालकनी में खड़े हो जाएं तो शहर बड़ा नजर आता है, मानो सुर्ख नीले आसमां का आलिंगन शहर से हो रहा है।
नीला आसमां...आज की युवा पीढ़ी ने तो कभी नहीं देखा था। प्रकृति के इस रूप के साथ युवा अभिभूत हैं, सुखद अनुभूति में हैं। होना लाजिमी भी है, क्योंकि प्रकृति भी तो बीसवीं सदी के सातवें दशक में लौट गई है। महानगरों से प्रकृति कैसी रूठी हुई थी, पशु-पक्षी विलुप्त थे। आसमान में सन्नाटा होता था, अब यही तोता, बुलबुल, कोयल करीब आ रहे हैं। नील गाय, हिरण सड़कों तक आ गए हैं।
शरीर की ऊर्जा बढ़ा रही है प्रकृति : सारे उद्योग, फैक्ट्रियां बंद हैं, सड़कें खामोश हैं। एकाध बार बारिश भी हो गई तो आसमान में जो थोड़े दूषित पार्टिकल जमे थे वो भी खत्म हो गए। देखिए, अब महानगरों में तारे साफ दिखाई दे रहे हैं, आसमां तारों की चमचमाहट से जगमगाता है। और प्रफुल्लित कर देने वाली मंद-मंद भाव में बहती हवा मन को शीतलता और पर्यावरण की सुगंध के साथ शरीर को अलग ही तरीके से पोषित कर रही है। भले लॉकडाउन में बाहर नहीं जाना है, वॉक नहीं हो रही है, लेकिन प्रकृति आपके घर तक ऊंची इमारतों में रहने वालों तक के भी करीब आ रही है। निश्चित ही हर उम्र वर्ग के लोगों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और जिससे कोरोना संक्रमण को हराने की ऊर्जा का संचार होगा।
भविष्य का संदेश दे रहे पशु-पक्षी : ऊंची इमारतों के बीच तो बहुत ज्यादा पेड़ भी नहीं हैं, उसके बावजूद बालकनियों तक पक्षी आ रहे हैं। बारबेट, फ्लेमबैट वुडपेकर, जैसे पक्षियों की आवाज आसपास सुनने को मिल रही है। गाजियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन की तरफ ऊंची इमारतों के आसपास फैले जंगल और खामोश सड़कों तक जानवर बेफिक्र घूमते दिख रहे हैं। कुछ दिन पहले वहां जैकाल दिखा। यमुना एक्सप्रेस-वे पर हिरण ही आ गया और नोएडा में सर्वाधिक भीड़भाड़ वाली जगह जीआइपी मॉल के पास नील गाय घूम रही थी। ये पशु पक्षी लॉकडाउन से पहले भी हमसे दूर नहीं थे, लेकिन हम भागदौड़ में, जिंदगी के शोर में, प्रकृति के हरण में इतने मशगूल थे कि ये सब डरे छिपे दूर-दूर रहते थे।
घरों में भी राहत दे रहा प्रकृति का साथ : मेदांता अस्पताल की डॉक्टर सुशीला कटारिया भी मानती हैं कि प्रकृति का ऐसा साथ लोगों को घरों में भी राहत दे रहा है। पक्षी प्रेमी व डिस्ट्रिक फॉरेस्ट ऑफिसर सुंदरलाल बताते हैं कि दफ्तर के काम से ही बाहर निकला था। इतने किस्मकिस्म के वाटर बर्ड आ रहे हैं। यही क्यों, मुंबई, बेंगलुरु, गुरुग्राम, चंडीगढ़, गाजियाबाद, नोएडा जैसे शहरों में लोग पक्षियों को अपने नजदीक महसूस कर रहे हैं। चंडीगढ़ में तो हिरण बकायदा सड़कों पर अठखेलियां करते हुए दिख रहे हैं। कभी जेब्रा क्रासिंग करते हैं तो कभी सड़क किनारे लगे पेड़ों के पीछे छिप जाते हैं।
सकारात्मक ऊर्जा का हो रहा संचार : दिल्ली के चिड़ियाघर के क्यूरेटर रियाज खान भी मानते हैं कि पशु-पक्षियों को भी पर्यावरण में राहत का एहसास है, चारों तरफ कोई शोर नहीं है तो ऐसे में ये बाहर निकल कर आ रहे हैं। इससे लोगों को भविष्य के लिए भी संदेश है कि प्रकृति, पशु-पक्षी यह सब कितने प्यारे हैं, हमारे भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार के दाता हैं। इनका हमेशा ख्याल रखें। भीड़ का कोलाहल थमा तो वर्षों पुराने दौर में लौट गई प्रकृति, सड़कों पर टहल रही नील गाय, कुलांचे मार रहे हिरण, पक्षियों की चहचहाहट करा रही सुखद सुबह का अहसास।